
रोगाणु (बैक्टीरिया) और विषाणु (वायरस) ठण्डे वातावरण में ही ज्यादा पनपते हैं। किसी भी तरह से जब वे शरीर में घुस जाते हैं, तो प्रतिरोधी तंत्र शरीर का तापमान डिग्री बढ़ा देता है। बढ़े हुए तापमान पर रोगाणु या विषाणु जीवित नहीं रहते। अतः यदि बुखार को दवा या अन्य किसी तरीके से दबाया नहीं जाए, तो रोगग्रस्त करने वालों का स्वतः ही नाश हो जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह धारणा गलत है कि बचपन के बुखार से बच्चे का मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है। वास्तविकता यह है कि बचपन में होने वाले संक्रामक रोगों के कारण हमारे शरीर में, रोग से बचाने वाला, आजीवन कवच तैयार हो जाता है। किन्तु स्वास्थ्य और साफ-सफाई के नाम पर एक ओर टीकों की भरमार शिशु के शरीर में होने लगी है, तो दूसरी ओर बच्चे को किसी भी सम्भावित संक्रमण से एकदम बचाकर रखा जाता है। बच्चे को हल्का-सा जुकाम, खाँसी या बुखार होते ही डॉक्टर के पास ले भागते हैं। बचाव की ऐसी ही मानसिकता के कारण आजकल शिशु को सर्दी में जहाँ ऊनी वस्त्रों से लाद देते हैं वहीं गर्मी में उसे एकदम झीने कपड़े पहना देते हैं। दोनों ही बातें उसके लिए घातक हैं। (कारण, उपचार तथा बचाव)

स्वास्थ्य के बारे में जागरूक पीढ़ी व उनके बच्चे आए दिन डॉक्टर के पास भागते नजर आते हैं। कारण छोटा-सा है। शिशु के शरीर को रोग से लड़ने का अनुभव ही नहीं होने देना। जितना उसे बचाकर रखा जाएगा उतना ही वह अक्षम होता जाएगा। बुखार होने पर शिशुओं को ही नहीं, बड़ों को भी कम-से-कम तीन दिन तक कोई दवा नहीं दें। यदि उसके बाद भी बुखार या पीड़ा बनी रहे तभी कोई औषधि देना वांछित है। लेकिन आज न किसी को फुर्सत है और न उनमें इतना धैर्य। अच्छा यही है कि शिशु को कुछ दिन बुखार में रहना सीखने दें और स्वयं भी इसे देखना सीखें।
इस धैर्य के परिणाम देखकर आप चकित रह जाएँगे छोटे-मोटे संक्रमण या मौसमी बुखार को स्वतः ठीक होने में इससे ज्यादा समय नहीं लगता।
जरूरत इतना-सा समझने की है कि जन्म लेने वाले हर प्राणी में प्रकृति, इसी संसार में जीने योग्य क्षमता भी देती है।

डेंगू
लक्षण–अचानक बिना खाँसी व जुकाम के तेज बुखार, शरीर में तेज दर्द, डेंगू बुखार होने पर हड्डियों में भी तेज दर्द होता है इसीलिए इसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं। सिर के अगले हिस्से में गंभीर दर्द होना। आँख के पिछले भाग में दर्द। माँसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द । भूख एवं स्वाद का कम होना। खसरा जैसे दाने छाती पर निकल आना। मितली व उल्टी का होना ।
डेंगू बुखार में रक्तस्राव भी होने लगता है। रोगी को प्रकाश से चिड़चिड़ाहट-सी हो जाती है। उल्टी या बेचैनी की शिकायत भी संभव है। कई बार बुखार समाप्त होने के बाद फिर से आ जाता है। यह वर्षा के बाद अधिकतर होता है। ये डेंगू बुखार के सामान्य लक्षण हैं। डेंगू बहुधा बड़ी महामारी के रूप में फैलता है तथा बहुत-से लोगों को इसके कारण जान से हाथ धोना पड़ता है।
रक्त स्राव (हीमोरैजिक) के लक्षण-डेंगू ज्वर के लक्षण हैं—गंभीर तथा लगातार पेट दर्द; ठंडी पीली व चिपचिपी त्वचा, चेहरे और हाथ-पैरों पर लाल दाने या दरदराहट के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। हीमोरैजिक डेंगू होने पर शरीर के अंदरूनी अंगों से रक्त स्राव हो सकता है। नाक, मुँह व टट्टी के रास्ते से खून आ सकता है, जिससे कई बार मरीज बेहोशी की हालत में चला जाता है। रक्त के बिना या रक्त के साथ बार-बार उल्टी, निद्रा के साथ व्यग्रता, लगातार चिल्लाना, ज्यादा प्यास या मुँह का बार-बार सूखना – ये सब डेंगू के लक्षण हैं। हीमोरैजिक डेंगू – अत्यधिक खतरनाक होता है। सर्वाधिक मौतें इसी से होती हैं। डेंगू बुखार साधारण बुखार से काफी मिलता-जुलता-सा होता है इसलिए डॉक्टर तक इस रोग को पहचानने में कई बार गच्चा खा जाते हैं। (बच्चों का डेंगू बुखार )

कैसे फैलता है—यह विषाणु से ग्रसित मादा एडीज एजिप्टाई मच्छर के काटने से फैलता है।
मच्छर पैदा कहाँ पर होते हैं?—रुके हुए पानी में यह मच्छर तेजी से पनपता है। अधिकतर कूलर, ड्रम, जार, बर्तन, बाल्टी, टैंक, पानी के हौज, बोतल या कोई ऐसी जगह जहाँ पानी इकट्ठा होता है। इसीलिए बारिश के बाद खासतौर पर घरों के आस-पास पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। मौसम में जगह-जगह पानी इकट्ठा हो जाता है।
जहाँ पानी को निकालना संभव नहीं होता वहाँ कीटनाशकों या जले हुए मोबिल ऑयल का प्रयोग करना चाहिए। मोबिल ऑयल या मिट्टी के तेल से पानी की सतह के ऊपर तेल की एक पतली परत-सी बन जाती है। जिससे मच्छर के लार्वा की श्वसन क्रिया बाधित होने से वह मर जाता है। उपयुक्त कीटनाशकों के प्रयोग से भी मच्छरों से बचा जा सकता है। मच्छर रोधी उपाय, जैसे-मच्छरदानी, मच्छर रोधी क्रीम, रिपेलेन्ट्स व अगरबत्तियों का प्रयोग भी जरूरत के हिसाब से किया जा सकता है। गाँवों में पशु रखने के बाड़ों और नम, अंधेरी व सीलनदार जगहों पर मच्छरों के पनपने की सम्भावना ज्यादा होती है। इसीलिए ऐसे स्थानों पर कीटनाशकों का उपयोग आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए। इसके अलावा कपड़े इस तरह के पहनने चाहिए जिससे हाथ-पैरों समेत पूरा शरीर ठीक से ढँका रहे।

उपचार
उपचार-साधारण तरह के डेंगू में मरीज को ज्यादा खतरा नहीं होता। इसके लिए लक्षण आधारित उपचार किया जाता है। मसलन तेज बुखार होने पर ठण्डे पानी की पट्टियाँ रखी जा सकती हैं। बुखार उतरने की दवाईयाँ भी जरूरत के हिसाब से दी जा सकती हैं। हीमोरैजिक डेंगू होने पर रोगी में रक्त प्लेटीनेट्स की संख्या बढ़ाने के लिए प्लेटीनेट्स की अतिरिक्त मात्रा देनी आवश्यक होती है। यहाँ खास बात यह है कि हीमोरैजिक डेंगू होने पर रोगी को दर्द निवारक दवा नहीं देनी चाहिए। कई बार दर्द निवारक दवाओं से रोगी में रक्त स्राव की संभावना बढ़ जाती है। इस दौरान शरीर में पानी की मात्रा और रक्त चाप को नियंत्रित करना भी जरूरी होता है। ज्वर, बुखार, मलेरिया ठीक करने वाले उपचार इसको ठीक करने के लिए काम में ले।