
आस्टियोपोरोशिशस क्या होता है? हड्डियों की कमजोरी का इलाज (osteoporosis)
बढ़ती उम्र के साथ हड़िया में कमजोरी आना एक आम समस्या है। अस्टियोपोरोसिस यह एक ऐसी बीमारी है। जिनमें हड्डीया अन्दर से खोखली हो जाती है। आस्टियो + पोरोशिस :- अस्टियो का मतलब होता है बोन और पौरोनिस का मतलब होता है, खोखला। हड्डियों की कमजोरी का इलाज (osteoporosis)
आस्टियोपोरोशिस में हड़ियां कमजोर होने लगती है। और उनके टूटने और फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है। सामान्यतया बुजुर्ग लोग मे ज्यादा होती है। इसमें मनुष्य की बांडी की मासपेशिया कमजोर होने लगती है और हड्डीया कमजोर होकर टूटने लगती है। जिससे कुल्हे, रीढ की हड़ी के ऊतक (बोन टिश्यू) लगातार बनते रहते है और नई हड्डी पुरानी क्षतिग्रस्त हड्ड़ी की जगह ले लेती है।
मजबूत हड्डीया के निर्माण के लिए हमारे शरीर को कैल्शियम की आवश्यकता होती है, कैल्शियम की कम मात्रा लेने से भी आन्टियोपोरोशिस हो सकता है ।
उदाहरण :- जैसे हम मधुमक्खी के छत्ते को देखे! तो उसमें छोटे छोटे कोटर बने होते हैं। एक-एक छता दूसरे छते से छोटी-छोटी पतली पतली दीवारों से अलग रहती है। अगर हम छोटे-छोटे कोटर के बीच की दीवार हटा दे। तो छता उतना ही बड़ा रहेगा। लेकिन उनके अन्दर बड़ी-बड़ी गोल-गोल छेद बन जाएंगे। बिलकुल वैसे ही जब हड़ी अन्दरूनी तरफ से गलने लगती है तो उसकी वजह से हड्डी अन्दरूनी रूप से खोखली हो जाती है उसे आस्टियोपोरोसिस कहते हैं।

ऑस्टियोपोरोसिस के कारण (causes of Osteoporosis)
हमारे शरीर की हड़िया का लगातार नवीनीकरण होता है और नई हड्डी बनती है और पुरानी बड़ी टूट जाती है। युवावस्था में हमारी हड्डियों का घनत्व सर्वाधिक होता है किंतु आयु के बढने के साथ-साथ यह कम होता रहता है महिलाएं और पुरुषों दोनों में यह बीमारी देखने को मिलती है।
सामान्य हड्डी प्रोटीन, कोलेजन और कैल्शियम से बनी होती है। जब हड्डियां अपनी डेंसिटी खोने लगती हैं और अस्वाभाविक रूप से कमजोर, छेददार (Porous) हो जाती हैं, तो वे अधिक आसानी से संकुचित होती हैं, जिससे उनमें दरार पड़ने (जैसे हिप फ्रैक्चर ) या स्पाइनल फ्रैक्चर होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। बीएमडी में कई लेवल पर नुकसान होना शुरू होता है। बीएमडी में नुकसान होने के पहले स्तर को ऑस्टियोपेनिया के रूप में जाना जाता है। इसका इलाज ना करवाया जाए, तो ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस होने पर सबसे ज्यादा फ्रैक्चर होने की संभावना पसलियों (Ribs) और कलाइयों में (Wrists) होता है।
1. महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी के कारण यह रोग होता है। जो रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं की हड्डियों की हानी में तेजी आ जाती है। और महिलाओं में एस्ट्रोजेन हार्मोन मे तेजी से गिरावट होने लगती है।2. पुरुषों में कम टेस्टोस्टेरोन के कारण हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए पुरुषों को टेस्टोस्टेरोन औएस्ट्रोजनदोनो हार्मोन की आवश्यकता होती है इसकी कमी होने पर पुरुषों में ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है।3. हार्मोन असंतुलन के कारण इस रोग से पैराथाइरॉइड हार्मोन बहुत अधिक हो जाता है। जिसे हाइपरपैराथाइरॉइडिजम कहा जाता है। मूत्र में कैल्शियम की कमी के कारण बनता है। शरीर वृद्धि हार्मोन का उत्पादन कम करने लगता है। 4. हड्डियों का कमजोर होना कैल्शियम की कमी के कारण होता है। 5. विटामिन D की कमी के कारण विटामिन की कमी के कारण हड्डियों कमजोर हो सकती है और टूट सकती है। विटामिन डी जिसे कैल्सिट्रियोल भी कहा जाता है।
ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण :-ऑस्टियोपोरोसिस को साइलेंट किलर भी कहते है। ऐसा इसलिए क्यों की जब शुरुआत में हड्डियों को नुकसान होना शुरू होता है तो कोई खास लक्षण नजर नहीं आते है। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है और हड्डियां कमजोर होने लगती है।
1. खड़े होने का पोस्चर 2. जोडो और मांसपेशियों में दर्द होना 3. बैठने और खड़े होने में परेशानी होना4. पीठ में दर्द होना
आस्टियोपोरोसिस से बचाव के उपाय :- 1. प्रतिदिन योग करें।2. कैल्शियम का सेवन अधिक करें। 3. स्मोकिंग और अल्कोहल का सेवन ना करे। 4. तनाव दूर करे। 5. अच्छा आहार ले। 6. विटामिन डी के लिए धूप सेकें। आरियोपोरोशिस योग से ठीक करने का उपाय:-
योग के अभ्यास से हड्डियों में मजबूती लाने में विशेष सहायक है। आसनों के अभ्यास से आस्टियोपोरोसिस को ठीक किया जा सकता है। योग शरीर में रक्त संचार सुधारने में भी मदद करता है और रक्त संचार सुधारने का अर्थ है शरीर में पोषक पदार्थों का अवशोषण ज्यादा होना।
1. पादहस्तासन (Padahastasana) हड्डियों की कमजोरी का इलाज (osteoporosis)
अन्य नाम : उत्तानासन (Uttanasana), हस्त पादासन (Hasta Padasana)
उत्तानासन के लाभ :
पादहस्तासन हड्डियों में खिंचाव पैदा करके उन्हें मजबूत बनाने में मदद करता है। ये आसन रीढ़ की निचली हड्डियों, पैरों और हिप्स की हड्डी को मजबूत बनाता है। इस आसन से शरीर के हर हिस्से में ऑक्सीजन पहुंचती है और संतुलन बढ़ाने में मदद मिलती है। पादहस्तासन शरीर के प्रजनन तंत्र और हार्मोन असंतुलन को भी ठीक करता है। शुरुआत में इस आसन के अभ्यास में समस्या हो सकती है। इसलिए इसका अभ्यास धीरे-धीरे ही करे और अभ्यास बढ़ाएं जाये।
2. वीरभद्रासन – (Virabhadrasana )
अन्य नाम : वीरासन – (Warrior Pose )
वीरभद्रासन के लाभ :
वीरभद्रासन बहुत कमाल का आसन है क्योंकि ये एक साथ आपकी बांहों, रीढ़ और पैरों पर काम करता है। ये मांसपेशियों के साथ ही हड्डियों को भी मजबूत बनाता है। ये आसन शरीर में संतुलन सुधारने में भी मदद करता है। ये शरीर में रक्त संचार बढ़ाने और हार्मोन असंतुलन को ठीक करने में मदद करता है।
3. अर्ध चंद्रासन (Ardha Chandrasana)
अन्य नाम : अर्ध चंद्र आसन (Half Moon Pose)
अर्ध चंद्रासन के लाभ :
अर्ध चंद्रासन शरीर का संतुलन बढ़ाने वाला आसन है। ये आसन शरीर की कमजोर हड्डियों में संतुलन बढ़ाने की क्षमता को भी सुधारने में मदद करता है। अर्ध चंद्रासन के अभ्यास से पैरों, रीढ़ और हाथों की हड्डियां भी मजबूत होती हैं। यह आसन रक्त संचार में सुधार लाकर पोषक पदार्थों के पोषण की क्षमता बढ़ाता है।
4. उत्थित पार्श्वकोणासन (Utthita Parsvakonasana)
अन्य नाम : विस्तारित पक्ष कोण मुद्रा (Extended Side Angle Pose)
उत्थित पार्श्वकोणासन के लाभ : पार्श्वकोणासन
उत्थित पार्श्वकोणासन पैरों में खिंचाव लाकर उन्हें मजबूत बनाता है। ये आसन हाथों और कमर पर भी काम करता है। ये आसन हमारे पेट के भीतरी अंगों और प्रजनन तंत्र को भी बेहतर बनाता है। ये आसन शरीर में हार्मोन असंतुलन को ठीक करने में मदद करता है। ये आसन रक्त संचार बढ़ाता है जिससे हड्डियों में विटामिन डी और कैल्शियम का अवशोषण बढ़ता है।
5. पर्वतासन – हड्डियों की कमजोरी का इलाज (osteoporosis)
पर्वतासन के लाभ :
पर्वतासन रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने में गजब का काम करता है। इस आसन को करने से रीढ़ की हड्डी पर पूरी लंबाई में एक साथ खिंचाव आता है। इससे रीढ़ की हड्डी पर पड़ने वाला कोई भी स्ट्रेस आसानी से दूर हो जाता है। इससे हड्डियों और जांघ की मांसपेशियों को भी अच्छा खिंचाव मिलता है और टांगें मजबूत हो जाती हैं। पर्वतासन के अभ्यास से रक्त संचार सुधरता है और हार्मोन असंतुलन ठीक करने में मदद मिलती है।
6. सेतु बंधासन (Setu Bandhasana)
अन्य नाम : पुल आसन या Bridge Pose
सेतु बंधासन के लाभ :
ये आसन मूल रूप से रक्त संचार बढ़ाने और पीठ को मजबूत बनाने पर काम करता है। सेतु बंधासन रीढ़ की हड्डी के साथ ही पसलियों के तनाव को भी कम करने में मदद करता है।
7. ऊर्ध्व धनुरासन (Urdhva Dhanurasana)
अन्य नाम : चक्रासन (Chakrasana), पहिया मुद्रा (Wheel Pose), ऊर्ध्वमुख धनुरासन (Upward Facing Bow Pose)
ऊर्ध्व धनुरासन के लाभ :
ऊर्ध्व धनुरासन को योग की एडवांस लेवल मुद्रा माना जाता है। इसीलिए इस आसन का अभ्यास तभी करें जब आपको योग करते हुए कम से कम 3 महीने का वक्त हो चुका हो। इसके अलावा शुरुआत में बिना योग शिक्षक के इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
ये आसन शरीर में ऑक्सीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाता है और रक्त संचार सुधार कर पोषक तत्वों के पोषण को सुधारने में मदद करता है। इस आसन के अभ्यास से हाथ और पैरों की हड्डियां मजबूत होती हैं। ये आसन पेट के भीतरी अंगों को भी अच्छी मसाज देता है। इस आसन के अभ्यास से हार्मोन असंतुलन को भी सुधारने में मदद मिलती है।
8. भुजंगासन (Cobra Pose)
भुजंगासन के लाभ :
रीढ़ की हड्डी में मजबूती और लचीलापन बढ़ता है। पेट के निचले हिस्से में मौजूद सभी अंगों के काम करने की क्षमता बढ़ती है। पाचन तंत्र, मूत्र मार्ग की समस्याएं दूर होती हैं। मेटाबॉलिज्म सुधरता है और वजन कम करने में मदद मिल सकती है। कमर का निचला हिस्सा मजबूत होता है। फेफड़ों और हार्ट की नसों के ब्लॉकेज खोलने में भी मदद मिलती है।
9. वृक्षासन – Vrikshasana (Tree Pose)
वृक्षासन के लाभ
1. वृक्षासन जांघों, पिंडली, टखनों और रीढ़ को मजबूत करता है। नितम्भ और आंतरिक जांघों, छाती और कंधों में खिंचाव लाता है। शारीरिक संतुलन में सुधार लाता है। साइटिका से राहत दिलाता है। रीढ़ की हड्डियों में खिचाव ला कर उसके विकारो को मिटाता है।
10. त्रिकोणासन (Trikonasana)
त्रिकोणासन के लाभ
प्राथमिक मस्कूलोस्कैलेटल (मांसपेशियों और हड्डियों) के लाभ: यह हिप हिंज मूवमेंट पैटर्न को विकसित तथा गहरा करने में मदद करता है।
इस आसन के अभ्यास से रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आता है, कंधों के मध्य संतुलन ठीक होता है, पीठ के दर्द से आराम मिलता है, पैल्विक अंगों की मालिश होती है तथा सुदृढ़ बनते हैं। आसीन जीवन शैली और गलत उठने बैठने के ढंग में सुधार आता है, गर्दन की जकड़न को कम करता है, टखनों को मजबूत करता है। कंधे और घुटनों तथा, बाहों और पैरों के जोड़ों को सुदृण करता है।
यह आसन तंत्रिका तंत्र को संतुलित करता है जिससे मानसिक अवसाद दूर होता है। पेल्विक क्षेत्र तथा प्रजनन तंत्र मजबूत होता है।
प्राणायाम से ठीक करने का उपाय:-
1. अनुलोम-विलोम प्राणायाम के लाभ:- हड्डियों की कमजोरी का इलाज (osteoporosis)
अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अर्थात अनुलोम-विलोम प्राणायाम में नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्र से सांस को बाहर निकालते है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम को कुछ योगी ने ‘नाड़ी शोधक प्राणायाम’ भी कहते है। उनके अनुसार इसके नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोगी बनी रहती है। इस प्राणायाम के अभ्यासी को वृद्धावस्था में भी गठिया, जोड़ों का दर्द व सूजन आदि शिकायत नहीं होतीं।
फेफड़े शक्तिशाली होते है।
सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों से काफी हद तक बचाव होता है।
गठिया के लिए फायदेमंद है।
मांसपेशियों की प्रणाली में सुधार करता है।
पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है।
तनाव और चिंता को कम करता है।
पूरे शरीर में शुद्ध ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है।
सावधानियां :-
श्वास के प्रति सचेत रहें देखें कि यह शरीर और मन को कैसे प्रभावित करती है।
इसे शुरुआत में एक या दो मिनट के लिए प्रयास करें।
पहली बार जब आप कोशिश करते हैं, तो यह थोड़ा अजीब लग सकता है।
इसे केवल तब तक करें जब तक आप सहज हों।
अपने आप को अपने कम्फर्ट जोन से बाहर जाने के लिए बाध्य न करें।
असफल होने पर हमेशा दूसरी बार फिर से कोशिश कर सकते हैं।
नियंत्रण और आराम महसूस करना महत्वपूर्ण है।
अपना समय अपनी गति से बढ़ाएं।
शुरुआत में अनुलोम विलोम का अभ्यास प्रशिक्षित योग शिक्षक के साथ ही करें।
2. कपालभाति से लाभ :- हड्डियों की कमजोरी का इलाज (osteoporosis)
रोजाना कपालभाति करने से लिवर और किडनी से जुड़ी समस्या ठीक होती है।
यह दिमाग को तनाव मुक्त भी करता है।
यह आपके फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाता है, और उन्हें मजबूत करता है।
कपालभाती को शरीर से विषाक्त पदार्थों और अन्य अपशिष्ट पदार्थों को निकालने के लिए जाना जाता है।
इस आसन को करने से याददाश्त और एकाग्रता शक्ति में सुधार होता है।
इसके अलावा यह आसन चिंता और तनाव को दूर करने की एक विश्वसनीय तकनीक है।
यह आपकी त्वचा के स्वास्थ्य में सुधार करता है और आपको एक चमकदार चमक देता है।
सावधानियां :-
कपालभाति करते वक्त आप सांस लेने की स्पीड को घटाएं या बढ़ाएं नहीं, एक समान रखें।
इस आसन को करते वक्त आपका पूरा ध्यान पेट के मूवमेंट पर होना चाहिए, सांसों पर नहीं।
कपालभाति करते समय आपके कंधे नहीं हिलने चाहिए।
सांस अंदर लेते वक्त पेट बाहर की ओर और सांस छोड़ते वक्त पेट अंदर की ओर होना चाहिए।
हार्निया,अल्सर या फिर सांस की बीमारी वाले लोग इसे न करें।
ओस्टियोपोरोसिस की समस्या से बचने के लिए आहार: (Diet Plan to Prevent Osteoporosis)
हड्डियों से जुड़ी समस्याएं आजकल बुजुर्गों को ही नहीं बल्कि युवाओं को भी होने लगी हैं। खराब जीवनशैली, जंक फूड का अधिक सेवन, कैल्शियम जैसे विटामिनों की कमी, धूप से बचते रहना इसके कुछ कारण हो सकते हैं। इन गलत आदतों के कारण ही हड्डियां धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं और ओस्टियोपोरोसिस जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
पोटैशियम का अच्छा स्रोत होने के कारण केला खाना हड्डियों के लिए फायदेमंद होता है। इसके अलावा, पोटैशियम की पूर्ति के लिए दूध तथा दुग्ध उत्पादों एवं शकरकंद और आलू को भी अपने आहार में शामिल करें।
1. विटामिन डी युक्त आहार:
विटामिन डी को सूरज की किरणों से सीधे प्राप्त किया जा सकता है इसके लिए आप सोया मिल्क, दुग्ध उत्पादों, चीज, मशरूम, अनाज, ऑरेंज जूस आदि को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं।
2. कैल्शियम युक्त आहार
दुग्ध उत्पाद जैसे दूध, दही, पनीर आदि के सेवन से कैल्शियम की कमी को दूर किया जा सकता है। हरी पत्तेदार सब्जियां, वहीं टोफू, पनीर, साबुत अनाज, केला, ब्रेड तथा बादाम भी कैल्शियम के अच्छे स्रोत हैं।
3. मैग्नीशियम युक्त आहार
हड्डियों तथा जोड़ों को मजबूत बनाए रखने के लिए मैग्नीशियम भी आवश्यक होता है। मैग्नीशियम खनिज की पूर्ति के लिए आलू, टमाटर, पालक, शकरकंद आदि का सेवन फायदेमंद होता है।
4. पोटैशियम युक्त आहार
पोटैशियम का अच्छा स्रोत होने के कारण केला खाना हड्डियों के लिए फायदेमंद होता है। इसके अलावा, पोटैशियम की पूर्ति के लिए दूध तथा दुग्ध उत्पादों एवं शकरकंद और आलू को भी अपने आहार में शामिल करें।
5. प्रोटीन युक्त आहार
प्रोटीन न केवल हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है, बल्कि बोन मास बढ़ाने में भी सहायक है। सूखे मेवे, बीज, फलियां, आलू, साबुत अनाज आदि प्रोटीन के अच्छे स्रोत होते हैं।